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Saturday, 11 November 2017

जैसलमेर दुर्ग,घोड़ा कीजे का काठ का,पग कीजे पाषाण। अख्तर कीजे लोहे का,तब पहुँचे जैसाण।।

जैसलमेर दुर्ग की नींव विक्रम संवत 1212मे श्रावण सुदी को रावल जैसल ने इंसाल ऋषि की सलाह से रखी.यह दुर्ग गोरहरा नामक पहाड़ी पर बना हुआ है गस कारण इस दुर्ग को गोरहरागढ़ भी कहा जाता है.इस किले को बनाने मे लगभग सात वर्ष का समय लगा था.

जब सूरज की किरणें इस किले पर पड़ती है तो यह किला सोने के समान चमकीला दिखाई देता है इस कारण इस किले को सोनारगढ़ के नाम से भी जाना जाता है.

अबुल फजल ने इस दुर्ग को देखकर कहा की “ऐसा दुर्ग जहाँ पहुँचने के लिए पत्थर की टाँगे चाहिए ”

जैसलमेर के प्रमुख स्मारक👉
जैसले कुआँ✏ पौराणिक मान्यता के अनुसार कृष्ण भगवान अपने सखा अर्जुन के साथ घूमते-घूमते यहाँ आए तथा अर्जुन को कहा की कलयुग मे मेरे वंशज यहाँ राज करेगे उनकी सुविधा के लिए सुदर्शन चक्र से जैसलू कुए का निर्माण किया.

सर्वोतम महल✏ इस महल का निर्माण महारावल अखैसिंह ने करवाया जिसे शीश महल भी कहते है.

रगंमहल✏ इस महल का निर्माण मूलराज द्वितीय द्वारा करवाया गया.

बादल विलास✏ इस महल का निर्माण सन् 1884 ई. मे सिलावटो नज अमर सागर पोल के निकट करवाया यह महल पाँच मजिंला है.

लक्ष्मीनारायण मन्दिर✏ भगवान विष्णु के इस मन्दिर का निर्माण सन् 1437 मे प्रतिहार शैली मे करवाया गया.

जैसलमैर के ढ़ाई साके👉
पहला साका सन् 1299 मे हुआ जब अलाउद्दीन खिलजी ने जैसलमेर दुर्ग पर आक्रमण किया इसमे भाटी शासक रावल मूलराज व कुंवर रतनसी के नेतृत्व मे राजपूतों ने केसरिया और राजपूत महिलाओं ने जौहर किया.

दूसरा साका सन् 1357 मे हुआ जब फीरोजशाह तुगलक ने दुर्ग पर आक्रमण किया इसमे भाटी शासक रावल दूदा,त्रिलोक सिंह और भाटी सरदारों ने युद्ध क्षेत्र लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की तथा वीरांगनाओ ने जौहर किया.

तीसरा अर्द्ध साका सन् 1550 मे हुआ क्योंकि इसमे राजपूत पुरुषो ने केसरिया तो किया परन्तु महिलाओं द्वारा जौहर नही किया गया।

घोड़ा कीजे का काठ का,पग कीजे पाषाण।
अख्तर कीजे लोहे का,तब पहुँचे जैसाण।।

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